इराक़ से लौटा एक सिपाही - तबिष खैर
कर भी क्या सकता था,
वो जो में था
वृद्ध महिलाओं का रक्षक,
वृद्ध महिलाओं का रक्षक,
और कातिल भी।
मेरे सीने पर बैठी थी
मेरे सीने पर बैठी थी
एक कुत्तिया,
जवाब ढूंढ़ने को प्रशिक्षित -
चलती थी, उछलती थी,
जवाब ढूंढ़ने को प्रशिक्षित -
चलती थी, उछलती थी,
इशारों पर।
अपनी एम सोलह एटू से
अपनी एम सोलह एटू से
दाग दी मैंने गोलियां -
वहीं लुढ़क गई वो,
वहीं लुढ़क गई वो,
मर गई वो।
अपने घर पर,
अपने घर पर,
मैं भी समृद्ध था
हसीनाएं खेलती थी,
हसीनाएं खेलती थी,
मेरे झबराले गेसुओं से,
सपनो में, नशे में, चूर
हम साथ से जाते थे।
अपनी ही मर्ज़ी का मालिक था मैं,
तब तक
जब कैदखाने के सायों से घिर गया,
और सहसा मुझे याद आया,
कुछ जो मैं भूल चुका था,
जो अब तक याद ना आया।
क्या था वो -
सपनो में, नशे में, चूर
हम साथ से जाते थे।
अपनी ही मर्ज़ी का मालिक था मैं,
तब तक
जब कैदखाने के सायों से घिर गया,
और सहसा मुझे याद आया,
कुछ जो मैं भूल चुका था,
जो अब तक याद ना आया।
क्या था वो -
एक बत्ती, शमा, या कांगरी?
कुछ तो रोशनी का ही था,
कुछ
कुछ तो रोशनी का ही था,
कुछ
जो शायद मुझे,
आजाद कर सकता था।
- तबिष खैर
अनुवाद - दिवाकर एपी पाल
- तबिष खैर
अनुवाद - दिवाकर एपी पाल
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