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Showing posts from January, 2011

a new take on poetry....

एक और दिन ढल गया, बोझिल और लाचार सा; स्तब्ध चांदनी को कोहरे ने छन्नी सा ढँक रखा है.. शायद ऒस की बूँद से भीगा होगा, य़े गाल गीला मालूम पडता है; आँसू तो अब आते नहीं, इन पथरायी आँखों में. जिन्दा रहने की चाहत है, पता नहीं कैसे; सफ़र ये कैसा है, चलना भी रोज़ है और जाना कहीं नहीं. मंज़िल क्या होती है, जाना नहीं अब तक; बस बेज़ार सा सफ़र है पगडन्डी के रास्ते... Dated: 16 January,2011

क्यूं

गुलपोश ये बदन लोहबान सी महकती अदा; होंठों को तेरे छूने से खिलखिलाने लगी ये फ़िज़ा. रंगीन हुआ समाँ रौशन हुआ जहाँ; रेशम सी नाज़ुक अलकें जैसे घिर आई हो घटा. इन घटाओं की बारिश मे भीगने की ख्वाहिश; फ़िरते हैं तेरे आगे-पीछे, दीवानों के माफ़िक. आवारा तेरी नज़रें, गवारा नहीं मुझको. देखती हैं क्यूँ जमाना, जमाना क्यूँ देखे तुझको??            22 अक्टूबर 2010

Bekhayali..

Khushboo ye teri,  Hawa jo layi hai;  Humpe ye kaisi,  khumari chhayi hai.   Khoya mai tere,  dilkash khayalon me;  Soya mai teri,  Chaahat ke khwabon me.   Raaton ko jaagun,  Din ko tadpun..  Bekhayali me bhi,  Tera hi khayal hai;  Kya hai ye,  Bas yahi sawaal hai..                  dated: 20 Nov, 2010