नमक और नमकहराम - मलय रॉय चौधरी

अपनी जीभ से छुआ था, 
मेरे जिस्म को तुमने
अवंतिका, 
और कहा था - 
"आह, लावणी सौंदर्य
दिलों के दिल.. 
मर्दानगी की खुशबू..."

उस दिन, 
पुलिसिया हिरासत से 
अदालत की ओर
कमर में बंधी थी रस्सी, 
और हथकड़ी में हाथ
उपद्रवी हत्यारों के मध्य, 
चल रहा था मैं;
तमाशा देखती भीड़, 
जमा थी 
सड़क के दोनों तरफ।

उन विश्वासघाती जनों, 
जिन्होंने स्वेच्छा से
अदालत में दी शहादत, 
मेरे खिलाफ, 
ने कहा,
कटघरे में खड़े होकर - 
"ना जी!
मीठा था वो पसीना, 
ना कि नमकीन;
फिर 
नमकहरामी का तो सवाल ही नहीं -
हमें नमकहराम ना बुलाया जाए!"

                नून ओ नीमकहरामी - मलय रॉय चौधरी 
                            (कोलकाता - 2005)
                अनुवाद - दिवाकर एपी पाल 

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