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पुणे डायरी - भाग एक (घुंघराले बालों वाली लड़की)

कॉलेज का गेट, जिसपर एक तोरण द्वार बना था, और अर्ध चंद्राकार काँक्रीट के फ़्रेम पर कॉलेज और यूनिवर्सिटी के नाम दो भाषाओं में ऐल्यूमिनीयम की चमकती प्लेटों से लिखे थे – अंग्रेज़ी और मराठी। किसी जमाने में अंग्रेज़ी का साथ हिंदी को नसीब था, लेकिन अब ऐसा करना लोकल मानुष को चुनौती देना भी था, और क़ानूनन अपराध भी। हाँ, अगर तीन भाषाएँ लिख दो, तो किसी को आपत्ति नहीं होती, लेकिन इतनी ज़हमत और अतिरिक्त प्लेटों का खर्च उठाने की ज़रूरत ही क्या थी?  तोरण के नीचे दो फाटक थे, एक क़रीब 25 फ़ीट चौड़ा और दूसरा क़रीब 4 फ़ीट का। चौड़ा वाला फाटक गाड़ियों के लिए खुलता था, जिसे खोलने दरबान खुद चल कर आता था, और गुजरने वाली गाड़ियों को पहचान कर किसी किसी को सलाम भी ठोंकता था। संकरा वाला फाटक अमूनन खुला ही रहता था, और मोटर-साइकल, साइकल, स्कूटी और पैदल चलने वालों से दरबान उनका पहचान पत्र देखने के बाद ही पार करने की इजाज़त देता था। आर्थिक समाजवाद का ये नियम अलिखित, पर अटूट था। इसी फाटक के बाहर एक प्लास्टिक के बोरे को बिछाकर एक बुढ़िया बैठती थी, जो सिगरेट, पान-मसाला और गुटखा मार्केट प्राइस से 1 रुपया अधिक पर बेचती