शमशान - मलय रॉय चौधरी
एक दोपहर,
धान की भूसी उड़ने के मध्य
एक मृत उल्लू के शव से उड़ते
एक मृत उल्लू के शव से उड़ते
पिस्सू-शावक
चुरा रहे थे वसा।
उनके हाथों में,
चुरा रहे थे वसा।
उनके हाथों में,
मूढ़ी की भीनी सी खुशबू
आक के फूलों के,
आक के फूलों के,
रुंधे गले से निकली चीखें,
धीमे से उठाकर
जैसलमेर की भंगुर,
जैसलमेर की भंगुर,
मंद बयार में
पर-पीड़नशील सुख!
सर्पीले शहर में,
पर-पीड़नशील सुख!
सर्पीले शहर में,
रक्त-रंजित दीवार घड़ी की बड़ी सुई
और आग की दप्त रोशनी में
और आग की दप्त रोशनी में
मुस्कुराते इंसानी चेहरे।
फड़फड़ाते कबूतर,
फड़फड़ाते कबूतर,
फटे दस्तावेजों की-सी आवाज में,
थोड़ी सी
जीते हुए अपनी ज़िंदगी।
सूर्यास्त के रंग सी दीप्त भौहें,
सवार, ज्वार के दौरान,
जीते हुए अपनी ज़िंदगी।
सूर्यास्त के रंग सी दीप्त भौहें,
सवार, ज्वार के दौरान,
एक मनहूस नौका पर
रूखे लेवणी में लिपटा शव।
बढ़ा मैं,
रूखे लेवणी में लिपटा शव।
बढ़ा मैं,
स्वर्णिम नद-मुख की ओर
हथेली में पकड़े हुए,
हथेली में पकड़े हुए,
एक क्षणिक चक्रवात की एक गांठ।
फेंके हुए
फेंके हुए
धान के लावों का
छाती पीटता रुदन -
सिर्फ वही मेरा था।
शमशान - मलय रॉय चौधरी (1992)
सिर्फ वही मेरा था।
शमशान - मलय रॉय चौधरी (1992)
अनुवाद - दिवाकर एपी पाल
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