Posts

Showing posts from December, 2020

आज़ाद हूं!

आज़ाद लहरें, टकरा के जैसे अपनी ही मौज में तोड़ती हैं साहिल को - कतरा-कतरा, अपना रास्ता बनाती; कभी कभी उफनते जज़्बात बह निकलते हैं सब्र का बांध तोड़ आँखों के किनारों से। गुजर जाए जब कोई ऐसी गमगीन शब – रात की जमा किरचों को ठंडे पानी के धार से धो लेता हूँ और निकल जाता हूँ वापस एक नई मौज़ पर सवार एक नए सफ़रनामे की तलाश में।                          28-नवम्बर-2020