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Showing posts from 2010

स्वच्छन्द बन्जारा

स्वच्छंद बंजारा एक अकेला ख्वाब था देखा, नन्हा-नन्हा, प्यारा-प्यारा; एक अकेले ख्वाब की खातिर वारा मैंने जीवन सारा. एक अकेला ख्वाब ही था वो मेरे जीने का सहारा; एक अकेली जीत थी जिसके लिये मैं अप्ना सब कुछ हारा. जीती न थी ये दुनिया मैंने जीत वो थी बस मन-ही-मन में, जीत न थी वो पल भर की जश्न का लम्हा पल में सिमटा. सिमट आयी थी जहाँ की खुशियाँ, सिमट आया था जहाँ ये सारा; एक जीत का ख्वाब था मेरा जीवन का वो लम्हा प्यारा. अब न रहे कोई ख्वाब इस मन में, अब न रहा कोई मकसद प्यारा. आब जी सकता हूँ खुल कर मैं अप्ना जीवन स्वच्छन्द बन्जारा... dated: 19th Oct,2010

भीगी भीगी पलकें

भीगी-भीगी पलकें कुछ इशारे कर गयी झुकती हुई नज़रें कुछ इशारे कर गई दिल की हर धडकन को नाम तुम्हारे कर गई. मदहोश हम हो गये खामोश हम हो गये पर तेरी ये खामोशी भी वो सारी बात कर गई. दिल कि हर धडकन को नाम तुम्हारे कर गई. गुनगुनाती हुई ये फ़िज़ा मुस्कुराता हुआ ये समाँ गुलशन में उठी एक आदिम सी महक ज़िन्दगी में जागी एक नई सेहर. दिल की हर धडकन को नाम तुम्हारे कर गई.. भीगी भीगी पलकें कुछ इशारे कर गई दिल की हर धडकन को नाम तुम्हारे कर गई.. dated- 21 september,2010

Tumse door chala aaya hun....

Tumse door chala aaya hun, Par tujhe bhula na paya hun. Is tarah se basi hai Meri saanson me yun, Gulshan ki bayar me Mahke gulabon ki khushboo; Apni saanson ko, chalne se Na thaam paya hun. Tumse door chala aaya hun Magar tujhe bhula na paya hun. Ban ke rahti hai tu Lahu ka ik aisa katra, Bin dard ke jaan se jo Kabhi nai bichhra; Lahu ka bahna bhi to Apni ragon me, na rok paya hun. Tumse door chala aaya hun, Magar tujhe bhula na paya hun. Dhadkan me basi hai Ik teri sada, Goonjti hai kanon me Sirf teri wafa; Teri bewafai ko ab tak Kabool na paya hun; Tumse door chala aaya hun. Magar tujhe bhula na paya hun. Tumse door yun chala to aaya hun, Magar tujhe bhula na paya hun... dated: 3rd september,2010

A short verse, Flattering d grl!!

इतनी लौ खुदा में लगाते, तो पीर न हो जाते! पर तेरी बाहों का सुकून, खुदाई में कहाँ पाते.. ये तो इनायत है रब की, की तू है मेरे साथ, वर्ना खुदा को हम, कब भला पहचान पाते.. dated March 2009

कैसी ये तन्हाई

Kaisi ye tanhayi hai,  Nagin si parchhayi hai;  Poonam ki raat ko dhankti,  Kali badri si chhayi hai.  Hum to the ulfat ki timari me,  Jane kaisa junoon tha;  Sone ko na neend thi,  Jagne ko na sukoon tha.  Tera kusoor tha,  Ya mera kusoor tha;  Ya hum pe chhaya,  Koi maddham suroor tha.  Anchahe se khwab the, Aur khwabon ka usool tha,  Khwabon me bhi yar hi mera:  Khuda; Mera rasool tha.   Aaj unhi khwabon ko dhoondhti,  Bejan si meri aankhein hain;  Aankhon me aansoo hain,  Ya aansuon me doobi aankhein hain.  Khoye khoye se din hain,  Aur tanha si raatein hain;  Yaadon ke jungle me,  Khoyi sari baatein hain..                                 dated 24 November,2009

Into Love

Jin aankhon ne  hamein Diwana kar diya;  Un aankhon ke noor ke sadke.  Tere gesuon ne madhosh kiya;  Unki tareef me karun mai sajde..   Peshani chand si hai,  Laton ki badli  badi janchti hai.  Labon ki surkhi yun,  Koi kahani si kahti hai..   Hontho ko chum lun,  Ya tera husn niharun;  Tareef me kaside padhun,  Ya teri zulf sanwarun..   Bahon me tu jo aati hai,  Zindagi tham si jati hai;  Waqt ka na hosh rahe  Ghadi ko khumari ho jati hai..   Tere nashe ki kya baat hai,  Sharab me wo baat kahan;  Jine ki hamein chahat hai,   Par marne ka khauf kahan..                                 dated 4th Aug..

Trying to get outta memory

Tere tasavvuron ki khwahish me,  Khwabgah ki numayindagi hi  chahat ban gayi.  Mujhe majlish ki zarurat thi,  Magar tanhayi hi rahat ban gayi..   Bejan, pathrayi huyi aankhein,  Dhoondhti rahi tera thikana.  Teri yaadon ke saayon ke liye,  Seekha hum ne palkein bichhana.. P alkon se aansuon ne,  Apna irada badal liya.  Teri yaadon ko mitane ko,  Dil ne itna hi pahal kiya..   Ab aansoo nahi aate,  Nahi aati teri yaad.  Dil ko yakin hai,  Milega jarur tera sath.  Gar abhi nahi,  To ruh ki rukhsat ke baad..

क्यूँ

इस दुनिया में जिंदा क्यूँ हैं? आज हमें बतलाए कोई। इस दुनिया में इंसां क्यूँ है आज हमें समझाए कोई। कल तक तेरी हर बात पे हंसता था आज मगर ये रोना क्यूँ है झूठे सपने क्यूँ आते हैं, झूठे सपने क्यूँ आते हैं सच हमें दिखलाए कोई, सच हमें दिखलाए कोई। इस दुनिया में जिंदा क्यूँ हैं? आज हमें बतलाए कोई। किस्सों की तो बात नहीं थी न ख्वाबों का अफसाना था फ़िर क्यूँ बेकस, इन रातों में बिन बातों का जगना क्यूँ है। रोना क्यूँ है, आखिर आज मुझे यूँ रोना क्यूँ है। इस दुनिया में जिंदा क्यूँ हैं? आज हमें समझाए कोई आज हमें बतलाए कोई।

फ़िर याद

आज फ़िर उनकी याद आ गई आँखों में नमी, और दिल की धड़कन कुछ बढ़ी सी महसूस हुई। सोचा, शायद उन्हे भी बेकरारी सी होगी; पर, उनके खयालों से,  रंजिश न कम हुई। होंठों पे उनका नाम,  न रखने की मजबूरी है; वरना उनके नाम को रो लेते ख्वाबों मे भी जो उम्मीद होती,  उन्हे पाने की तो दिल थाम, हम सो लेते।  ना आँखों मे नींद है,  न दिल ने सुकून पाया पर वादा जो था तुझसे -  कभी दूर न होगा तुमसे मेरा साया।  शिकवा जो है हमसे,  तो हमसे गिला करो पर फक्त इसी बहाने से,  लेकिन हमसे मिला करो। मिलते मिलते ही शायद,  शिकवे दूर हो जाएँगे शायद एक बार फ़िर हम, आपकी आँखों के नूर हो जाएँगे।

नशीली य़ादें (ग़ज़ल )

ज़िन्दगी में मेरी आकर तुमने, आदत मेरी यूँ खराब कर दी. सीने में कुछ खाली सा किया, और उसमे शराब भर दी। बहके-बहके से चलते हैं, सूनी गलियों में बेज़ार से। छलकते पैमानों के बीच हमने, सुबह से शाम कर दी। सिगरेट के धुएँ के छल्लों से, एक धुंधलका सा बनता है। इस धुन्धली-सी नज़र को हर चेहरा, तुम जैसा ही जान पडता है। तुम तो आदत खराब कर गये, निबटना हमीं को पडता है। ज़ेहन को तो समझा भी लें हम, तडपना दिल को पडता है। नशा कितना भी हो जाये, तेरी आँखों से कम सा लगता है। तेरे लबों की मिठास के आगे, हर कुछ कडवा सा लगता है। मेरी ज़िन्दगी में आ के, मेरी आदत यूँ खराब-सी कर दी। मेरी ज़िन्दगी की हालत तुमने, पुरानी किताब में दबे गुलाब-सी कर दी।                                         30 जुलाई 2010

हिन्दी ग़ज़ल - पहली

आज हिचकियों के बीच  ये खयाल आया  शायद  कहीं   उनके खयालों में   मेरा नाम आया;  वक्त फिसलता रहा  मुट्ठी में फँसी रेट की तरह;  हम अकेले तपते रहे जेठ में - बंजर खेत की तरह।  बेबस नज़रों से  छुप-छुपाकर, उनकी हर अदा को  देखा है हमने कशिश से निहार कर।    शायद बुज़दिल थे हम  या सिर्फ़ डरते थे इस बात से  कहीं निकल न जाए धूप, इन महकती हुई रातों से।  वो आधी रात को उनका याद आना, वो नंबर डायल कर उन्हे जगाना; उनकी चिढ़ी आवाज पर,  फ़िकरे कस, उन्हे चिढ़ाना  और नाराजगी पर,  सौरी टू डिस्टर्ब कह  उन्हे मनाना! इस रूठने मनाने के दौर में  अनचाहे,  जुदा हो गए,  जाने किस मोड़ पे  क्या दे सकेगी  वापस ज़िंदगी मुझे या डसेगी तन्हा शामें  यूँही उलझे उलझे।                          30 जुलाई 2010