नशीली य़ादें (ग़ज़ल )

ज़िन्दगी में मेरी आकर तुमने,
आदत मेरी यूँ खराब कर दी.
सीने में कुछ खाली सा किया,
और उसमे शराब भर दी।

बहके-बहके से चलते हैं,
सूनी गलियों में बेज़ार से।
छलकते पैमानों के बीच हमने,
सुबह से शाम कर दी।

सिगरेट के धुएँ के छल्लों से,
एक धुंधलका सा बनता है।
इस धुन्धली-सी नज़र को हर चेहरा,
तुम जैसा ही जान पडता है।

तुम तो आदत खराब कर गये,
निबटना हमीं को पडता है।
ज़ेहन को तो समझा भी लें हम,
तडपना दिल को पडता है।

नशा कितना भी हो जाये,
तेरी आँखों से कम सा लगता है।
तेरे लबों की मिठास के आगे,
हर कुछ कडवा सा लगता है।

मेरी ज़िन्दगी में आ के,
मेरी आदत यूँ खराब-सी कर दी।
मेरी ज़िन्दगी की हालत तुमने,
पुरानी किताब में दबे गुलाब-सी कर दी।


                                30 जुलाई 2010

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