स्वच्छन्द बन्जारा
स्वच्छंद बंजारा
एक अकेला ख्वाब था देखा,
नन्हा-नन्हा, प्यारा-प्यारा;
एक अकेले ख्वाब की खातिर
वारा मैंने जीवन सारा.
एक अकेला ख्वाब ही था वो
मेरे जीने का सहारा;
एक अकेली जीत थी जिसके
लिये मैं अप्ना सब कुछ हारा.
जीती न थी ये दुनिया मैंने
जीत वो थी बस मन-ही-मन में,
जीत न थी वो पल भर की
जश्न का लम्हा पल में सिमटा.
सिमट आयी थी जहाँ की खुशियाँ,
सिमट आया था जहाँ ये सारा;
एक जीत का ख्वाब था मेरा
जीवन का वो लम्हा प्यारा.
अब न रहे कोई ख्वाब इस मन में,
अब न रहा कोई मकसद प्यारा.
आब जी सकता हूँ खुल कर मैं
अप्ना जीवन स्वच्छन्द बन्जारा...
dated: 19th Oct,2010
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