बरसाती शाम


आज फिर रात को,
तेज़ बारिश के आसार हैं,
मॉनसून ने दस्तक दे दी है।
बदली से ढंके आसमान को देख,
कई साल पहले की
वो शाम याद आ गई,
हाँ, ऐसी ही तो थी,
वो बरसाती शाम!


उस रोज़ भी शाम यूं ही,
जल्द घिर आयी थी,
और कॉलेज से थोड़ा
जल्दी आ गया था मैं-
तुम्हें, बिना बताए।


और उस शाम,
तुम्हारा फोन आया – कई बार,
तुम्हें खाने थे –
मिश्रा की दूकान के पकौड़े,
हलकी बारिश में –
अपने दुपट्टे को आंचल बना ओढ़ -
अदरक वाली चाय की चुस्कियों के साथ।


और इधर मुझे यारों ने,
सस्ती व्हिस्की पिला, चिप्स के साथ
बिठा लिया था - कैरम खेलने
एक लापरवाह शाम के बहाने;
और फोन नहीं उठाया था,
मैंने तुम्हारा!


कितना लड़ी थी तुम,
कितनी माफियां मांगी थी मैंने,
और अगले दिन, नाराज़
तुम कॉलेज नहीं आई।
और फिर,
मूसलाधार बारिश में भींग –
छतरी तब भी नहीं रखता था मैं –
तुम्हारे हॉस्टल के नीचे,
ऑमलेट और पाव लेकर,
तुम्हें मनाया था,
ठंडी-कटिंग चाय के साथ।


चलो इसी याद के नाम,
एक चाय पिला दो -
वही अदरक वाली।
                        (जून 2020)

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