सैनिटरी नैपकिन - मलय रॉय चौधरी


प्रेम, उस लड़की की तरह है, जिसे
स्कूल छोड़ देना पड़ता था
हर माह, साढ़े तीन दिन
पहनना पड़ता था
कपड़े में बाँध सूखे घास,
और बरसात के दिनों में,
चुँकि घास हरी होती है
तो, कपड़े में राख बाँध,
ताकि सोख सके
मासिक स्राव -
और अकेली बैठे,
किताबों से दूर. 
                        मलय राय चौधरी
                        अनुवाद: दिवाकर एपी पाल

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