मोटर- बाईक - मलय राय चौधरी

मोटर-बाईक येज़्डी - य़ामाहा पर हूँ मैं
जब फ़लक की चुनौती
और रेत की आँधी के मध्य
मेरे पैरों के निकट फ़टते हैं;
खूबसूरत, सजावटी धूम्र-गुबार।
बिना हेल्मेट के,
और अस्सी की रफ़्तार में
हवा को चीरता,
मध्य-ग्रीष्म की
चाँदनी तले खोती हुई सुदूर ध्वनियाँ;
तेज़-चाल लौरियाँ - पलक झपकते गायब
सोचने के वक्त से महरुम;
पर हाँ,
अपघात किसी भी समय संभावित,
भंगार में बदल जाऊँगा;
सूखाग्रस्त खेत में ढेर।

                मोटर-बाईक - मलय राय चौधरी
                अनुवाद - दिवाकर एपी पाल

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

दाँत का दर्द

अम्माँ - तबिष खैर