किन्नर कहता है: तबिष खैर
किन्नर कहता है:
यदि लज्जा एक कला है, तो निर्लज्जता एक करतूत:
उद्देश्य तो दोनों का ही
स्व-मात्र की रक्षणा है.
तुम सीखती हो,
हया से नजरें झुकाना;
हम नजरों की तीक्षणता से
बेहयाई का रोष दर्शाते हैं.
उस देश में,
जहाँ नव-वधुएँ
हया की मूरत हैं;
वहीं हम जैसी भी हैं,
जिनकी
बेशर्मी,
प्रहार-सम सूरत है.
उनकी कला की ज़रुरत
दूसरों द्वारा उनका भविष्य-निर्धारण;
और यही वह वजह है;
जिसे छुपाते हैं हमारे कार्य.
हम खडे हैं, आमने-सामने,
हम खडे हैं, पीठ से पीठ लगा के:
वो सहती हैं
उसी ’नियामत’ का प्रहार,
जिससे हम वंचित हैं.
जो हमें अलग करता है,
वही हमारी समानता है:
ये सनातन नियम है,
उस दुनिया का
जिसमें पुरुष की प्रधानता है..
द हिजरा स्पीक्स - तबिष खैर
(The Hijra Speaks - Tabish Khair)
अनुवाद: दिवाकर एपी पाल
Comments
Post a Comment