धुआँ

धुआँ ना हुआ, 
मानो दीवार-सी हो गई 
जाने किस घड़ी, 
तकरार वो हो गई. 
मुँह फ़ेर के वो 
यूँ गए जबसे 
कि ज़िन्दगी मेरी 
हलकान सी हो गई.. 
आज भी भीड़ में 
जाती है जो नज़र, 
मानो ढूँढती है 
उनको ही नज़र 
आँखें आज भी धुँधली हैं, 
धुआँ छँटता नहीं जाने क्यूँ.. 

         Dated: 18 June, 2011

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