इरोम की कविता (हिन्दी अनुवाद)

आज़ाद कर दो साँकलों से, मेरे पैर
काटों से गुँथी ये बेड़ियाँ
एक सँकरे कमरे मे बंद;
दोषी: जन्म लिया है मैंने,
एक उन्मुक्त पंछी की तरह.

कारा के अँधेरे कमरे में
कई आवाज़ें गूँजती हैं:
चिड़ियों की चहचहाहट से भिन्न,
नहीं, ये हँसी नही है!
नहीं, ये लोरी नहीं है!

माँ की छाती से छिज़ा हुआ बच्चा,
एक माँ की धीमी सिसकियाँ
धव से बिछुड़ी एक स्त्री
एक विधवा की कराह:
एक सिपाही के हाथों जनित, एक चीख.

दिखता है, आग का एक गोला
और अनुगामी है कयामत.
इस आग के गोले को
विज्ञान ने दी चिंगारी;
भाषित प्रयोगों के कारण.

इन्द्रियों के सेवक,
सभी सम्मोहन में हैं.
नशा, सोच का अभिन्न शत्रु
नष्ट कर दी है बुद्धिमता;
विचार-जन्य कोई प्रयोग नहीं.

पर्वत-श्रृंखला से आते राही का
चेहरे पर मुस्कान लिए हँसना:
यहाँ मेरे विलाप के सिवा कुछ नहीं!
कुछ नहीं, जो दृष्टिगत हो:
शक्ति, स्वंमेव दर्शा तो नहीं सकती !

कीमती है मानव जीवन
पर जीवन के अंत से पूर्व.
बनने दो मुझे अँधेरे का प्रकाश;
मधु-रस बोया जाएगा;
सच्ची विनाशहीनता का आगाज़ होगा.

कृत्रिम परों से सुसज्जित,
पृथ्वी के कोने-कोने में;
जीवन-मृत्यु की विभाजन रेखा के निकट,
भोर का गीत गाया जाएगा,
सम्मिलित विश्व-संगीत प्रदर्शित होगा.

खोल दो कारा की दीवारों को
मेरा रास्ता नहीं बदलेगा.
हटा लो ये काटों का बंधन,
मत ठहराओ मुझे दोषी,
उन्मुक्त पंछी के अवतरण का..

-इरोम शर्मिला चानु (मणिपुरी)

Dated: 16 June, 2011

Ms.Sharmila is 2007 Gwangju Human Rights co-awardee along with Dr. Lenin Raghuvanshi

Translated from Manipuri to English by
Wide Angle Social Development Organisation
http://sapf.blogspot.com/2008/11/poem-of-irom-chanu-sharmila.html

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