"छलकते पैमाने" हिन्दुस्तानी कवित्त में मेरे प्रयोगों का एक ब्लॉग है."छलकते पैमाने" में अब आप कुछ आधुनिक, अन्य भाषाओं की कविताओं के हिन्दी अनुवाद भी पाएंगे..
आशा है, "छलकते पैमाने" का उद्देश्य जो, हिन्दी साहित्य का विश्व-धारा में गौरवांवित स्तर पर संयोजन है, में कुछ सहयोग करेगी..
पिछले कुछ दिनों से एक दांत दर्द दे रहा था पता नहीं क्यों पर, सड़ चुका था वह। शायद, बचपन की चॉकलेटों की मिठास थी वजह, या रोज रात की दूध, या मटन चिकन के फँसे टुकड़े जो कुल्ले से साफ न होते थे। या शायद जवानी की लापरवाहियाँ - अक्सर रात की मज़लिस के बाद सुबह ब्रश ना करना या फिर दोस्तों के सामने कूल दिखने की कोशिश में, बियर की ढक्कनों के ऊपर आजमाइश या लगातार जलती सिगरेट की कशों से जमी कलिश की परतें। जो भी हो, सच - एक दांत सड़ गया था। दर्द, जो अब दांत से बढ़कर पूरे जबड़े पर फैला था। खा रहा था, पेन किलर, दिन के चार-चार, पर यह दर्द वापस उभर आता था! नींद से उठता था मैं बार-बार दिन को काम भी नहीं कर पाता था। उस दांत को निकलवा दिया है मैंने जबड़ा अब खाली-खाली सा लगता है वैसा ही जैसे कोई कड़वा रिश्ता छूट गया हो। अब दर्द नहीं होता दाँतों मे, अब चैन से सोता हूँ रातों को! - 2 नवंबर, 2019
बताया हमें - पाकिस्तानी, ख़ालिस्तानी, देशद्रोही - राजधानी में प्रवेश निषेध गड्ढे-कीलें, कँटीली तारों से बनी बाड़; देश बचा लो, आए किसान! छुपाया - 2 डिग्री की सर्द रातें, वॉटर क़ैनन की ठंडी बौछारें बर्फीली हवा, बारिश का पानी। 40 डिग्री की तप्त दोपहर, आँखों को चुंधियाती धूप। गोली की मार, और जीप की टायर की ज़द। और हमें दिखाया महज़ - एयरकंडीशन तम्बू, लंगर का पिज़्ज़ा, वाई-फ़ाई के राउटर, राहती मसाज़।
वो गोद में बैठ या कंधे से लटक लोरियाँ नहीं सुनना चाहते ना किस्से। वो सिहर जाते हैं, जब गुजरता हूँ उनके पास से उनकी हंसी, दबी-दबी सी है पर, वो रोते तो कभी नहीं दिखे मुझे। खेलते तो हैं आपस में, पर सहम जाते हैं जब दिखाऊं चॉकलेट या बिस्कुट। अक्सर सोते हुए चौंक कर उठ जाते हैं बिस्तर में। ये कैसे बच्चे हैं, जो हम बड़ों के एहसास से भी डरते हैं। 14 -अगस्त - 2021
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