भटकती रुहों की कब्रगाह

सजती है ये कब्रगाह -
हर रात
एक नई महफ़िल में,
मधुर झंकारों के शोर में.

आते हैं वे सभी
और मनाते हैं शोक
अपनी रुह की मौत का -
छलकते शराब और सिगरेट के धुओं में;
कुछ खुशनसीब -
शैम्पेन और सिगार में.

इन रुहों मे है:
एक पुलिसमैन -
छोड़ा जिसने एक दुर्दांत अपराधी को
रिश्वत लेकर.
एक डौक्टर -
जिसने मरीज़ को न देख,
उसकी जेब को देखा.
एक वकील -
जिसने दिलाई एक कातिल को ज़मानत
मोटी फ़ीस वसूलकर
एक जज़ -
जिसने सुनाया था एक गलत फ़ैसला
लालच या दबाव में.

कुछ ऐसी भी हैं रुहें
जो शराब खरीद नहीं सकते
खड़े महफ़िल के बाहर
शिकायती अंदाज़ में -
आखिर उन्हे भी है
अपराधबोध!

ये कब्रगाह -
हर रात सजती है.
अफ़सोस है उन्हे
अपनी मौतों का -
मनाते हैं शोक -
पीकर शराब,
सिगरेट के धुओं के बीच
लज़ीज़ पकवानों का स्वाद लेकर.

Translated from my poem "Graveyard of Lost Souls" written in 2013.

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