पुरानी डायरी

कुछ पुराने कागज़ात ढूँढते वक्त,
हाथ आई ये पुरानी डायरी.
पीले बदरंग कवर में,
सन २००१ की
मटमैले पन्ने थोड़े फूले से,
शायद कभी भींग गये होंगे -
इन गुजरे सालों में.


पलटे जो पन्ने मैंने, उत्सुकता मे,
और देखा,
पुराने पन्नो में दर्ज़ कई कविताएँ,
कई ख्याल,
और कुछ आकांक्षाएँ.
कितने ही हर्फ़, भूल चुका हूँ अब
कितने -
जिनके आज कोई मायने नहीं.


कुछ पन्ने, जिनकी लिखावट धुल गई है,
शायद फ़ाउन्टेन पेन से लिखी थी -
ये इबारत खास थे, जब लिखे थे,
अब मिट गये हैं वक्त के हाथों.


एक तस्वीर, चिपका रखी थी
मेरे पिता की - एक पन्ने पर.
वो आज भी वैसी ही है -
अब मुस्कुराती सी दिखती है
माँ का साथ जो मिल गया है.


एक-दो पत्र - स्टेपल से संजोए
कुछ खास नहीं लिखा उनमें, पर
आजकल चिट्ठियाँ कौन लिखता है भला.


अधिकतर कविताएँ - आज पढ़ा
तो हँस पड़ा!
लिखना शुरु किया था मैंने,
ऐसी बचकानी तुकबंदियों से.
उन ख्यालों को
किसी दिन, फ़िर से लिखूंगा
एक प्रौढ़ मन से.


ये डायरी आधी ही भरी है,
और आखिरी दर्ज़ है,
२०११ नवम्बर में.
लिखना बन्द कर दिया था मैंने - क्यूँ?
क्या हुआ उसके बाद?
मुझे खुद याद नहीं.


                        12-जून -2020

Comments

  1. मस्त है भाई। सहज है, शांत है, गम्भीर है और इंतजार है कि प्रौढ़ मन की अगली कविता का।

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

दाँत का दर्द

अपवित्र