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Showing posts from March, 2011

Just a small thought..

प्रेम का बंधन न बाँधो पिया; बस प्रेम-ही-प्रेम हो जीवन में; जल-सिंधु के प्रवाह सम, अंत:हृदय सागर-कूल.. Dated 26 March, 2011

बदला मनुष्य - मलय रॉय चौधरी

खतित; धर्म-च्युत: और ज़िहाद को मुखातिब।  राजश्री-हीन, एक सम्राट पतित स्त्रियाँ- हरमगामी।  नादिर शाह से तालीमशुदा तलवार को चूम, जंग को तैयार हवा पर सवार घोडी; मशालयुक्त मैं घुडसवार।  टूटे-बिखरे जंगी शामियानों की तरफ़ बढता हुआ मैं।  धू-धू जलते नगर के दरमियान; एक नंगा पुजारी- शिवलिंग के साथ फ़रार।                 पलटा मानुश - मलय रॉय चौधरी                                (1985)                 अनुवाद - दिवाकर एपी पाल  Dated: 21 March, 2011

आज फिर

आज फ़िर जीने की ख्वाहिश जागी है;  आज फ़िर एक सुहाना ख्वाब देखा था.  सुबह के धुंधलके में,  लालिम रोशनी के साथ;  एक नई मंज़िल का साथ देखा था.  एक पुराना मर्ज़ था,  सीने में दबा-सा; उसका ही खातिब,  इलाज देखा था। मरासिमों के फ़ंदे,  घुटन दे रहे थे;  मरासिमों से खुद को  आज़ाद देखा था। सेहर नया है,  नई इक सोच है;  इस सोच से मुखातिब, खुद को एक बार देखा था। आज फ़िर जीने की ख्वाहिश जागी है,  आज फ़िर एक सुहाना ख्वाब देखा था।                  7 मार्च 2011

रेगिस्तान

राहगीरों के सुर्ख चेहरे गीला बदन, सूखा गला. आधी खाली मशक. ऊँटों के काफ़िले: उनकी घन्टियों की आँधी के साथ जुगलबन्दी. रेत के सूखे टिब्बे; भूरा, रेत का गुबार. पीली, चिलचिलाती धूप. हरियाली के नाम पर कैक्टस के छोटे-छोटे पौधे. आज: रेगिस्तान में ऊँट नहीं चलते; चलती हैं एयर-कन्डीशंड गाडियाँ. मशक की जगह ठन्डी, मिनरल वाटर की बोतलें. आई-पौड का संगीत तो है; पर एकाकी कानों में सीमित; शान्तिप्रद! बहुत कुछ बदल गया! नहीं बदला तो बस: भूरा, रेतीला गुबार और कैक्टस के छोटे-छोटे पौधे..                           Dated: 1st March,2011

Dated: 26 February,2011

वन मे हिरणी हुई सतृष्ण. जेठ दुपहरी, जल विहिन.. भीषण लू, मरुस्थल की रेत; जलते हैं खुर: बचने को धधकती सी ज़मीन से भागती है वो तेज़.. बेचैन.. तरु-वर की छाँव, दूर नहीं; पर पानी कहाँ! रेगिस्तान मे बनता एक प्रतिबिम्ब: दौडती है वो, हिरणी; जल विहिन.. मरीचिका: जीवन की अभिलाशा.. जरुरत: कुदरत का खेल..