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Showing posts from July, 2010

Trying to get outta memory

Tere tasavvuron ki khwahish me,  Khwabgah ki numayindagi hi  chahat ban gayi.  Mujhe majlish ki zarurat thi,  Magar tanhayi hi rahat ban gayi..   Bejan, pathrayi huyi aankhein,  Dhoondhti rahi tera thikana.  Teri yaadon ke saayon ke liye,  Seekha hum ne palkein bichhana.. P alkon se aansuon ne,  Apna irada badal liya.  Teri yaadon ko mitane ko,  Dil ne itna hi pahal kiya..   Ab aansoo nahi aate,  Nahi aati teri yaad.  Dil ko yakin hai,  Milega jarur tera sath.  Gar abhi nahi,  To ruh ki rukhsat ke baad..

क्यूँ

इस दुनिया में जिंदा क्यूँ हैं? आज हमें बतलाए कोई। इस दुनिया में इंसां क्यूँ है आज हमें समझाए कोई। कल तक तेरी हर बात पे हंसता था आज मगर ये रोना क्यूँ है झूठे सपने क्यूँ आते हैं, झूठे सपने क्यूँ आते हैं सच हमें दिखलाए कोई, सच हमें दिखलाए कोई। इस दुनिया में जिंदा क्यूँ हैं? आज हमें बतलाए कोई। किस्सों की तो बात नहीं थी न ख्वाबों का अफसाना था फ़िर क्यूँ बेकस, इन रातों में बिन बातों का जगना क्यूँ है। रोना क्यूँ है, आखिर आज मुझे यूँ रोना क्यूँ है। इस दुनिया में जिंदा क्यूँ हैं? आज हमें समझाए कोई आज हमें बतलाए कोई।

फ़िर याद

आज फ़िर उनकी याद आ गई आँखों में नमी, और दिल की धड़कन कुछ बढ़ी सी महसूस हुई। सोचा, शायद उन्हे भी बेकरारी सी होगी; पर, उनके खयालों से,  रंजिश न कम हुई। होंठों पे उनका नाम,  न रखने की मजबूरी है; वरना उनके नाम को रो लेते ख्वाबों मे भी जो उम्मीद होती,  उन्हे पाने की तो दिल थाम, हम सो लेते।  ना आँखों मे नींद है,  न दिल ने सुकून पाया पर वादा जो था तुझसे -  कभी दूर न होगा तुमसे मेरा साया।  शिकवा जो है हमसे,  तो हमसे गिला करो पर फक्त इसी बहाने से,  लेकिन हमसे मिला करो। मिलते मिलते ही शायद,  शिकवे दूर हो जाएँगे शायद एक बार फ़िर हम, आपकी आँखों के नूर हो जाएँगे।

नशीली य़ादें (ग़ज़ल )

ज़िन्दगी में मेरी आकर तुमने, आदत मेरी यूँ खराब कर दी. सीने में कुछ खाली सा किया, और उसमे शराब भर दी। बहके-बहके से चलते हैं, सूनी गलियों में बेज़ार से। छलकते पैमानों के बीच हमने, सुबह से शाम कर दी। सिगरेट के धुएँ के छल्लों से, एक धुंधलका सा बनता है। इस धुन्धली-सी नज़र को हर चेहरा, तुम जैसा ही जान पडता है। तुम तो आदत खराब कर गये, निबटना हमीं को पडता है। ज़ेहन को तो समझा भी लें हम, तडपना दिल को पडता है। नशा कितना भी हो जाये, तेरी आँखों से कम सा लगता है। तेरे लबों की मिठास के आगे, हर कुछ कडवा सा लगता है। मेरी ज़िन्दगी में आ के, मेरी आदत यूँ खराब-सी कर दी। मेरी ज़िन्दगी की हालत तुमने, पुरानी किताब में दबे गुलाब-सी कर दी।                                         30 जुलाई 2010

हिन्दी ग़ज़ल - पहली

आज हिचकियों के बीच  ये खयाल आया  शायद  कहीं   उनके खयालों में   मेरा नाम आया;  वक्त फिसलता रहा  मुट्ठी में फँसी रेट की तरह;  हम अकेले तपते रहे जेठ में - बंजर खेत की तरह।  बेबस नज़रों से  छुप-छुपाकर, उनकी हर अदा को  देखा है हमने कशिश से निहार कर।    शायद बुज़दिल थे हम  या सिर्फ़ डरते थे इस बात से  कहीं निकल न जाए धूप, इन महकती हुई रातों से।  वो आधी रात को उनका याद आना, वो नंबर डायल कर उन्हे जगाना; उनकी चिढ़ी आवाज पर,  फ़िकरे कस, उन्हे चिढ़ाना  और नाराजगी पर,  सौरी टू डिस्टर्ब कह  उन्हे मनाना! इस रूठने मनाने के दौर में  अनचाहे,  जुदा हो गए,  जाने किस मोड़ पे  क्या दे सकेगी  वापस ज़िंदगी मुझे या डसेगी तन्हा शामें  यूँही उलझे उलझे।                          30 जुलाई 2010