नहीं कह सकता, कि उत्तरपारा का मेरा पैतृक घर, मेरा स्वदेस नहीं मैं जानता हूँ, आँखें-नुचीं लावारिश लाशें गंगा में तैरती है वहाँ। नहीं कह सकता, कि अहिरीटोला में मौसी का घर, मेरा स्वदेस नहीं मैं जानता हूँ, अपहृत लड़कियाँ बंधी, घुटती हैं पास ही सोनागाछी में। नहीं कह सकता, कि पनिहाटी में चाचा का घर, मेरा स्वदेस नहीं मैं जानता हूँ, कौन कहाँ मारा गया, सरेआम दिन-दहाड़े। नहीं कह सकता, कि बचपन का कोणनगर वाला घर, मेरा स्वदेस नहीं मैं जानता हूँ, किसे भेजा गया था, गला रेतने को। नहीं कह सकता, कि जवानी का कलकत्ता, मेरा स्वदेस नहीं मैं जानता हूँ, किसने फेंका था बम, लगाई थी बसों-ट्रामों में आग। नहीं कह सकता, कि पश्चिम बंगाल, मेरा स्वदेस नहीं हक़ है मुझे, यहाँ लॉक-अप में बंद, मृत्यु-पर्यंत यातनाओं का। हक़ है मुझे, यहाँ चाय बाग़ानों में भूखमरी का। हक़ है मुझे, यहाँ हैंडलूम मिलों में फांसी लगा झूलने का। हक़ है मुझे, यहाँ मिट्टी में दबी हड्डियों के ढेर बन जाने का। हक़ है मुझे, यहाँ मेरा मुँह बंद कर दिए जाने का। हक़ है मुझे, यहाँ राजनेताओं की बकवास, गालियाँ सुनते जाने का। हक़