मां

ये आंचल,
ये गोद,
या शायद
सिर्फ तुम्हारा
साया है मां!
पता नहीं क्यूं, तुमसे
बात कर सिर्फ
सुकून ही पाया है।

भूल चुका हूं,
तुम्हारी पहली याद -
पता नहीं क्यूं!
3-4 साल की उम्र होगी
जब तुम्हे
पहली बार देखा था,
या देखी थी,
तुम्हारी वो जीवट
मातृ शक्ति,
जो तुम्हारी
इकलौती पहचान है।

फिर शायद
तुम्हारी आदत
वापस बन गई।
वैसे ही देखा तुम्हे
अगले कुछ सालों तक
कभी कमजोर पड़ी भी
तो हमारे सामने
ज़ाहिर ना होने दिया।

अकेले ही ढोया
अकेले ही झेला,
तुम-सा सहनशील,
मजबूत, निस्वार्थ और निर्मल
किसी और को ना देखा।

पहली बार कमजोर देखा था
तुम्हे, कुछ महीने पहले!
और वो मंजर,
शायद सबसे खौफनाक है
मेरी ज़िन्दगी का।

मां!
मर्द होने का दंश है,
पर तुम्हारी औलाद
शायद पहले हूं!
रोना आता है,
पर तुम्हारे सामने
मुस्कुराता हूं,
बस यही सोच सोच
की कहीं,
मेरी पलकों में तुम्हें
कोई कतरा दिख ना जाए।
पता है मुझे, मां
मेरी आंखों के आंसू,
तुमसे बर्दाश्त नहीं होते।

नहीं रोऊंगा मैं मां,
कम से कम,
तुम्हारे सामने नहीं!
आखिर एक वादा किया था,
कुछ 20 साल पहले
अपने मन में!
पर आज उस वादे को
तोड़ देने को जी करता है!
नहीं तोड़ूंगा मां!

शायद एक सैलाब,
मेरे सब्र के बांध को तोड़
फट निकलने को बेताब है!
रोक लूंगा इसे मां,
रोक लूंगा!

उपसंहार:


रो पड़ा था मैं मां,
आखिर वादा तोड़ ही दिया मैंने।


Comments

Popular posts from this blog

दाँत का दर्द

प्रस्तुति - मलय राय चौधरी