"प्रस्तुति" (प्रस्तुति(१९८५)- मलय राय चौधरी) का हिंदी अनुवाद
कौन कहता है, बर्बाद हूँ मैं,
बस यूँ, कि विष-दंत, नख हीन हूँ मैं?
क्या अपरिहार्यता है उनकी? कैसे भूल सकते हैं वो खंजर
उदर में मूठ तक धंसा हुआ? इलायची की हरी पत्तियाँ
प्रतिरोध के लिए, घृणा एवं रोष मे कलारत;
हाँ, युद्ध की भी; साँस-विहीन, बंधक, सन्थाल औरत
फटे फ़ेंफ़डों से सुर्ख;
विरक्त खन्जर..
गर्वान्वित खङग का हृदय से खिंचना? निःशब्द हूँ मैं
संगीतहीन, गीतहीन. शब्दों के नाम पर, सिर्फ़ चीत्कारें.
वन की शब्दहीन बू. सन्यास-रिश्तों और पापों का कोण;
प्रार्थी एक आवाज़ का, जो कराहों को वापस बदल सके.
सहन योग्य शक्ति में; निर्भय बारूद की विभीषिका से:
अपंग दयालुता की- उम्मीद ही मूर्खता है-
जुए की बिसात पर मैं, खंजर दाँतों में दबाए
घेर रखा है मुझे, चारों ओर से,
चाय और कौफ़ी की धार ने,
मुँह-माँगी मज़दूरी की बेडियों में जकडा;
जरासंध के जंघा की तरह विभाजित, हीरों-सी आभा
हराने की कला ही एकमात्र विद्वता.
बेचारगी में चोरों की ज़ुबान, को संगीत मानकर.
मोम-सा नाज़ुक प्रेम, सेब-सा लालिम जिस्म.
समागम से पूर्व; चींटी का पँख-हीन हो जाना.
खम ठोंक-कर सर्व-शक्तिमान को ललकारता हूँ मैं,
ब्रम्हांड को छोड जाने को चेताता.
खुजाते बंदर के हाथ में खाली सीपी-सा.
कमल और चक्र और अधिकार-
विद्रोह की नींव को अपने पसीने से सींचता;
धमाके की ओर जाती बारूद के साथ गोली,
शब्दों की बाज़ीगरी में अर्थ को लीप-पोत कर;
पिल्लों के रोने से गुलज़ार अर्ध-रात्रि;
बीमार-सी दोपहर में कीटनाशक में डूबा एक फ़तिंगा;
खँजर के जादू के साथ, पुन: प्रस्तुत होता हूँ मैं..
(प्रस्तुति(१९८५)- मलय राय चौधरी) का हिंदी अनुवाद
दिनांक: 16 April, 2011
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