मेरी घड़ी
ये मेरी घड़ी, थोड़ी पुरानी हो गई है। एक नई की ज़रुरत तो नहीं है शायद, शायद कलाई पर इसे देख-देख, ऊब-सा गया हूँ। बदरंग सी लगती है इसकी स्टील की बेल्ट - घिस गई है मेरी कलाई की रगड़ से। खरोंचें हैं, इसकी डायल पर शायद कभी, इसके सहारे गिरा होउँगा किसी दिन। काँच पर पडी किरचें शायद ऐसी ही कुछ यादें हों। पर ये घड़ी मेरी, वक्त सही बताती है। कुछेक पल की हेर-फेर, शायद थक जाती है, कभी-कभी। सालों पहले शादी के दिन, मेरे ससुर ने बाँधा था इसे, मेरी कलाई पर। तब से ही, मेरा वक्त इसी घड़ी से जुड़ा है। थोड़ी पुरानी ही सही, पर ये घड़ी मेरी है। नई की ज़रुरत नहीं है मुझे! 6 नवंबर, 2019