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Showing posts from November, 2019

मेरी घड़ी

ये मेरी घड़ी, थोड़ी पुरानी हो गई है। एक नई की ज़रुरत तो नहीं है शायद, शायद कलाई पर इसे देख-देख, ऊब-सा गया हूँ। बदरंग सी लगती है इसकी स्टील की बेल्ट - घिस गई है मेरी कलाई की रगड़ से। खरोंचें हैं, इसकी डायल पर शायद कभी, इसके सहारे गिरा होउँगा किसी दिन। काँच पर पडी किरचें शायद ऐसी ही कुछ यादें हों। पर ये घड़ी मेरी, वक्त सही बताती है। कुछेक पल की हेर-फेर, शायद थक जाती है, कभी-कभी। सालों पहले शादी के दिन, मेरे ससुर ने बाँधा था इसे, मेरी कलाई पर। तब से ही, मेरा वक्त इसी घड़ी से जुड़ा है। थोड़ी पुरानी ही सही, पर ये घड़ी मेरी है। नई की ज़रुरत नहीं है मुझे! 6 नवंबर, 2019

दाँत का दर्द

पिछले कुछ दिनों से एक दांत दर्द दे रहा था पता नहीं क्यों पर, सड़ चुका था वह। शायद, बचपन की चॉकलेटों की मिठास थी वजह, या रोज रात की दूध, या मटन चिकन के फँसे टुकड़े जो कुल्ले से साफ न होते थे। या शायद जवानी की लापरवाहियाँ - अक्सर रात की मज़लिस के बाद सुबह ब्रश ना करना या फिर दोस्तों के सामने कूल दिखने की कोशिश में, बियर की ढक्कनों के ऊपर आजमाइश या लगातार जलती सिगरेट की कशों से जमी कलिश की परतें। जो भी हो, सच - एक दांत सड़ गया था। दर्द, जो अब दांत से बढ़कर पूरे जबड़े पर फैला था। खा रहा था, पेन किलर, दिन के चार-चार, पर यह दर्द वापस उभर आता था! नींद से उठता था मैं बार-बार दिन को काम भी नहीं कर पाता था। उस दांत को निकलवा दिया है मैंने जबड़ा अब खाली-खाली सा लगता है वैसा ही जैसे कोई कड़वा रिश्ता छूट गया हो। अब दर्द नहीं होता दाँतों मे, अब चैन से सोता हूँ रातों को! - 2 नवंबर, 2019