हिज्र की आखिरी रात
बड़ी मुश्किल से कटेगी ये हिज्र की आखिरी रात . ना सो पाउँगा मै, ना तुमको ही नींद आएगी . कितनी रातें कट गयीं तुम्हारे बिना . कितने दिन काटे ख्यालों में खोये हुए . पर आज बेसबब हुयी बेखुदी मेरी ; आज दिल को करार कहाँ .. ये चिराग की मद्धम लौ , ये जुल्फों से खेलता समीर . लगता है जैसे मिलकर , चिढ़ा रहे हों मुझे . बाँध ना पाऊं खुद को , इंतज़ार की घड़ियाँ मानो रुकी सी हों . कैसे कटेगी भला , हिज्र की ये आखिरी रात .. 30 जून 2012