बनारस - हरिश्चंद्र घाट
हरिश्चंद्र घाट पर, एक चट्टान पर बैठा एक रेतीले ढलाव के अंत पर, पानी की कगार पर – राख से काली पड़ चुकी है जो। लकड़ी का एक ऊँचा ढेर जल रहा है और एक आदमी का सिर उल्टा लटका है गहरा गयी है नाक और अधजला मुँह काले बिखरे बाल, बाकी – छातियाँ – पेट – एक ही रेखा में, जाँघों के बराबर चिता के ऊपर बिछे और दूसरी ओर पैर बाहर निकले – जिनकी अंगुलियाँ तपकर सिकुड़ गई हों – मुड़ गयी हों। चीत्कार मारते बत्तख़, और भीड़ लगाए सारस – सुराहीदार गर्दन वाले – का याराना मिलकर छिछले पानी की कगार में चोंच मारते इस आग से, कुछ ही फुट दूर। एलेन गिन्सबर्ग (इंडियन जर्नल्स 1962-63) अनुवाद - दिवाकर एपी पाल